कृषि मंत्री श्याम सिंह राणा ने किसानों को टिकाऊ पद्धतियों को अपनाने की दी सलाह

यमुनानगर/मोहित वर्मा
हरियाणा के कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री श्याम सिंह राणा ने रविवार को धान के अवशेष का प्राकृतिक उर्वरक के रूप में उपयोग करने वाली टिकाऊ खेती पद्धति की सराहना की। उन्होंने इसे मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने और किसानों के लिए उर्वरक लागत को कम करने में सहायक बताया। यमुनानगर जिले के धानुपुरा गांव में प्रगतिशील किसान प्रदीप कांबोज के खेत का दौरा करते हुए, राणा ने आधुनिक कृषि में पर्यावरण के अनुकूल तकनीकों के महत्व को रेखांकित किया।

दौरे के दौरान कृषि मंत्री राणा ने कांबोज की विधि का अवलोकन किया, जिसमें वह धान के अवशेषों को मिट्टी में मिलाकर गेहूं की खेती कर रहे हैं, जिससे डीएपी (डाय-अमोनियम फॉस्फेट) उर्वरक की आवश्यकता नहीं होती। कांबोज ने बताया कि पिछले कुछ वर्षों में उन्होंने यूरिया सहित रासायनिक उर्वरकों का उपयोग काफी कम कर दिया है, क्योंकि धान के अवशेष से मिट्टी को पर्याप्त पोषण मिलता है, और बिना डीएपी के भी अच्छी पैदावार हो जाती है। अब मैं महंगे रासायनिक उर्वरकों पर निर्भर हुए बिना अच्छी फसल ले पा रहा हूँ, कांबोज ने बताया, जो लागत में बचत और मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार का उदाहरण है।
इस विधि की सफलता से प्रभावित होकर, कृषि मंत्री राणा ने कृषि विभाग के अधिकारियों को राज्य में इसी तरह की टिकाऊ पद्धतियों को बढ़ावा देने का निर्देश दिया। मंत्री ने कहा, प्रदीप जैसे किसान अन्य किसानों के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं। उनकी यह विधि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आत्मनिर्भर भारत के दृष्टिकोण से मेल खाती है, क्योंकि यह कृषि में आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देती है और पर्यावरणीय स्थिरता में योगदान करती है। राणा ने अधिकारियों को फसल कटाई के समय कांबोज के खेत पर पुन: जाकर बिना डीएपी के प्राप्त पैदावार का आंकलन करने के लिए भी कहा, ताकि पर्यावरण अनुकूल खेती तकनीकों को समर्थन देने के लिए ठोस डेटा जुटाया जा सके। कृषि मंत्री ने रविवार को गांव धानुपुरा, दुधली, गौलनपुर, मंडेबरी, रामनगर, अमरपुरी व फर्कपुर में जाकर लोगों की समस्याएं सुनी व उनके समाधान करवाने का आश्वासन दिया।

इस दौरे के दौरान यमुनानगर के उप कृषि निदेशक डॉ. आदित्य प्रताप डबास ने बताया कि धान के अवशेष को मिट्टी में मिलाने से रासायनिक उर्वरकों की आवश्यकता काफी कम की जा सकती है। प्रारंभिक वर्षों में किसान अपने डीएपी उपयोग को 50 प्रतिशत तक कम कर सकते हैं, और जैसे-जैसे फसल अवशेष से मिट्टी में जैविक कार्बन बढ़ता है, आगे और भी कमी की जा सकती है, डबास ने समझाया।
इस पद्धति को व्यापक रूप से अपनाने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए मंत्री ने कहा कि सरकार मशीनों के लिए सब्सिडी देने की योजना बना रही है, जिससे किसान फसल अवशेष को प्रबंधित कर सकें। साथ ही, उन्होंने फसल अवशेष न जलाने वाले किसानों के लिए आर्थिक सहायता बढ़ाने की भी बात कही, जिससे प्रदूषण को कम कर स्वस्थ कृषि वातावरण का निर्माण किया जा सके।

कृषि मंत्री राणा ने कांबोज की इस पहल के समर्थन में खेत में ट्रैक्टर चलाया, जो टिकाऊ पद्धतियों के प्रति सरकार के समर्थन का प्रतीक था। भारत की भूमि अत्यंत उपजाऊ है, और हमें भविष्य की पीढिय़ों के लिए अपनी मिट्टी की रक्षा और पोषण करना चाहिए। प्रदीप जैसे किसानों का काम उर्वरकों के अत्यधिक उपयोग से संबंधित समस्याओं से निपटने में महत्वपूर्ण है, उन्होंने कृषि में पारिस्थितिक संतुलन की आवश्यकता पर जोर देते हुए कहा।

मंत्री ने इस तरह की विधियों को अपनाने वाले किसानों को सम्मानित करने की इच्छा व्यक्त की, ताकि उनके राष्ट्रीय कृषि लक्ष्यों और पर्यावरणीय स्वास्थ्य में योगदान को उजागर किया जा सके। हरियाणा में कृषि पद्धतियों का आधुनिकीकरण जारी है, और यह पहल एक मॉडल के रूप में कार्य करती है, जो दिखाती है कि पारंपरिक प्रथाओं को आधुनिक कृषि के साथ कैसे जोड़ा जा सकता है, ताकि कृषि क्षेत्र में टिकाऊ विकास और आत्मनिर्भरता हासिल हो सके।
इस मौके पर किसान नरेन्द्र राणा, जसमेर सिंह, विजय पाल सैनी, प्रदीप काम्बोज, संदीप काम्बोज, रिशु काम्बोज, सरपंच दिप्पी सैनी, पूर्व सरपंच मास्टर मेहर सिंह, आज्ञा राम सैनी, हरि सिंह, जोगिन्द्र सिंह, ज्ञान सिंह सैनी, सरपंच लक्ष्मी देवी व बलवान सिंह नम्बरदार सहित गांव के गणमान्य व्यक्ति उपस्थित रहे।

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