Journalist Mohit Verma, Yamuna Nagar
यमुनानगर, 7 जून- अंतर्राष्ट्रीय धान अनुसंधान संस्थान ने चौ. चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के सहयोग द्वारा कृषि विज्ञान केंद्र दामला में धान की सीधी बिजाई तथा कद्दू कर पारंपरिक प्रणाली से जल प्रबंधन विषय पर किसान वैज्ञानिक मीटिंग एवं ट्रेनिंग का आयोजन किया गया।
अंतर्राष्ट्रीय धान अनुसंधान संस्थान से वैज्ञानिक डॉ स्वतंत्र कुमार दुबे ने किसान व वैज्ञानिकों से धान की सीधी बिजाई व कद्दू प्रणाली पर परिचर्चा की तथा डीएसआर/धान की सीधी बिजाई को अपनाने हेतु प्रशिक्षण भी दिया। उन्होंने बताया कि धान की सीधी बिजाई प्रणाली न केवल पानी की बचत करती है बल्कि फसल पर लागत कीमत को भी कम करने में सफल है।
उन्होंने धान की सीधी बिजाई की तकनीकी जानकारी विस्तार पूर्वक दी तथा इस पद्धति में की जाने वाली तकनीकी प्रक्रियाएं जैसे खेत की लेजर लेवलर से समतलीकरण, सीधी बिजाई में उपर्युक्त मशीन (डीएसआर व लक्की सीडर), यांत्रिकी, रासायनो व मशीनों द्वारा खरपतवार प्रबंधन व नियंत्रण, किट व बीमारी एवं उर्वरक प्रबंधन के बारे में विस्तारपूर्वक जानकारी दी। उन्होंने गतवर्ष यमुनानगर, करनाल, कुरुक्षेत्र व पानीपत में किसानों के खेत में लगाए प्रायोगिक परीक्षण में धान की सीधी बिजाई व पारंपरिक धान रोपाई पद्धति द्वारा प्राप्त परिणामों को भी प्रस्तुत किया।
उन्होंने बताया कि सीधी बिजाई पद्धति किसान की आय, वातावरण व जल संरक्षण के लिए उत्तम पद्धति है। धान की सीधी बिजाई पद्धति कद्दू पद्धति की तुलना में किस प्रकार से पानी की बचत व आर्थिक लाभ पहुंचाती है के बारे में विस्तार पूर्वक वैज्ञानिक किसानों से जानकारी सांझा की गई।
कृषि विज्ञान केंद्र के मुख्य समन्वयक डॉ संदीप रावल ने फसल विविधीकरण के माध्यम से जल संरक्षण, मृदा संरक्षण, मृदा पोषक तत्व संरक्षण व पर्यावरण संरक्षण को विस्तार से बताते हुए फसल विविधीकरण में धान के अलावा अन्य फसल लगाने की सलाह दी और बताया कि धान की फसल में बहुत ज्यादा पानी की आवश्यकता होती है। भूमिगत पानी का अत्यधिक उपयोग करने से जलस्तर नीचे चला जाता है तथा कद्दू किया हुआ धान का खेत पानी को अवशोषित भी नहीं होने देता है जिससे जलस्तर बरकरार नहीं रहता जिससे आने वाली पीढ़ी के लिए जल संकट पैदा होने के आसार बने हुए है।
उन्होंने बताया कि किसान न केवल चावल को निर्यात करता है बल्कि व इसके रूप में बहुत सारा पानी भी अपने खेत या क्षेत्र से निर्यात कर देता है इसी के निवारण के लिए उन्होंने फसल विविधीकरण को प्रथम पायदान पर रखा और बताया कि अन्य फसलें, फल-फूल व सब्जियां आदि का भी उत्पादन करें।
इस अवसर पर कृषि विज्ञान केंद्र के मुख्य सलाहकार डॉ. एन.के. गोयल, वानिकी विशेषज्ञ डॉ अनिल कुमार, कृषि अभियंता कपिल सिंगल, मृदा वैज्ञानिक डॉ विशाल गोयल, प्रशिक्षण सहायक डॉ करण सिंह सैनी व आई.आर.आर.आई. से जसवीर सिंह तथा लगभग 20 प्रगतिशील किसानों ने हिस्सा लिया।